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मुद्रा

 मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा

 ‘मोदन्ते हृष्यन्ति यया सा मुद्रा यन्त्रिता सुवर्णादि धातुमया वा’
अर्थात्‌ जिसके द्वारा सभी व्यक्ति प्रसन्‍न होते हैं वह मुद्रा है जैसे सुवर्णादि बहुमूल्य धातुएं प्राप्त करके व्यक्ति प्रसन्‍नता का अनुभव अवश्य करता है।
mudra
‘मुद हर्ष’ धातु में “रक्‌ प्रत्यय लगाकर मुद्रा शब्दं॑ की निष्पत्ति होती है जिसका अर्थ प्रसन्‍नता देने वाली स्थिति है। धन या रुपये के अर्थ में “मुद्रा’ शब्द का प्रयोग भी इसी आशय से किया गया है। कोष में मुद्रा शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं। जैसे मोहर, छाप, अंगूठी, चिन्ह, पदक, रुपया, रहस्य, अंगों की विशिष्ट स्थिति (हाथ या मुख की मुद्रा)] नृत्य की मुद्रा (स्थिति) आदि।
यौगिक सन्दर्भ में मुद्रा शब्द को ‘रहस्य’ तथा “अंगों की विशिष्ट स्थिति’ के अर्थ में लिया जा सकता है। कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है, वह रहस्यमयी ही है। व गोपनीय होने के कारण सार्वजनिक नहीं की जाने वाली विधि है। अतः रहस्य अर्थ उचित है। आसनप्राणायाम के साथ बंधों का प्रयोग करके विशिष्ट स्थिति में बैठकर ‘मुद्रा’ का अभ्यास किया जाता है। इसलिए इसे अंगों की  स्थिति विशेष के रूप में भी लिया जाता है। और इनमें हाथों तथा मुख की विशेष स्थिति को भी सम्मिलित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ जानुशिरासन में बैठकर प्राणायाम तथा बन्धों का प्रयोग करके महामुद्रा का अभ्यास किया जाता है तथा प्राणायाम के अभ्यास के लिए हाथ की विशेष मुद्रा बनाकर नासारन्ध्रों पर ले जानी होती है। अतः उक्त ‘रहस्य’ तथा “अंगों की विशिष्ट स्थिति’ अर्थ उचित है। “मुद्रा’ अत्यन्त बहुमूल्य साधन हैं जो कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके साधक को लक्ष्य तक पहुँचाती है। अतः ‘सुवर्ण या धन या रुपया’ का भाव भी इसमें निहित है। इसकी बहुमूल्यता निःसन्देह सिद्ध होती है। उपर्युक्त अर्थ के आलोक में मुद्रा की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है-
– आन्ततरिक भावों को व्यक्त करने की विधा मुद्रा कहलाती है।
आसन, प्राणायाम की सम्मिलित विशिष्ट स्थिति जिसके द्वारा कुण्डलिनी शक्ति का जागरण सम्भव है, मुद्रा कहलाती है।
– आनन्द की प्राप्ति कराने वाली प्रक्रिया मुद्रा है।
– चित्त को प्रकट करने वाले विशेष भाव मुद्रा है।
मुद्रा आसन की वह विशेष स्थिति जिसमें प्राणायाम सम्मिलित हो या नहीं हो परन्तु जो कुण्डलिनी जागरण में मदद करें वह मुद्रा है।
 केवल आसन अथवा केवल प्राणायाम की अपेक्षा यह सम्मिलित अभ्यास शीघ्र फलदायक है। मुद्राओं के अभ्यास से साधक सूक्ष्म शरीर और प्राण शक्ति को नियंत्रित कर लेता है जिससे उसकी वृत्तियाँ अन्तर्मुखी हो जाती है तथा साधना में सफलता प्राप्त होती है। साधक अपने प्राणमय और मनोमय कोष को स्वच्छ व निर्मल बना लेता है जिससे चित्त एकाग्र हो जाता है तथा कुण्डलिनी जागरणसमाधि की स्थिति अनायास प्राप्त हो जाती है।

मुद्राओं के लाभ

कुंडलिनी या ऊर्जा स्रोत को जाग्रत करने के लिए मुद्रओं का अभ्यास सहायक सिद्धि होता है। कुछ मुद्रओं के अभ्यास से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त ‍की जा सकती है। इससे योगानुसार अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है। यह संपूर्ण योग का सार स्वरूप है।
मुख्‍यत: 6 आसन मुद्राएं हैं-
1. व्रक्त मुद्रा, 2. अश्विनी मुद्रा, 3. महामुद्रा,  4. योग मुद्रा, 5. विपरीत करणी मुद्रा, 6. शोभवनी मुद्रा
जगतगुरु रामानंद स्वामी पंच मुद्राओं को भी राजयोग का साधन मानते हैं, ये है-
1. चाचरी, 2. खेचरी, 3. भोचरी, 4. अगोचरी, 5. उन्न्युनी मुद्रा
उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: –
(1) ज्ञान मुद्रा, (2) पृथवि मुद्रा, (3) वरुण मुद्रा, (4) वायु मुद्रा, (5) शून्य मुद्रा, (6) सूर्य मुद्रा, (7) प्राण मुद्रा, (8) अपान मुद्रा, (9) अपान वायु मुद्रा, (10) लिंग मुद्रा
अन्य मुद्राएं
(1) सुरभी मुद्रा, (2) ब्रह्ममुद्रा, (3) अभयमुद्रा,  (4) भूमि मुद्रा, (5) भूमि स्पर्शमुद्रा, (6) धर्मचक्रमुद्रा, (7) वज्रमुद्रा, (8) वितर्कमुद्रा, (9) जनाना मुद्रा, (10) कर्णमुद्रा, (11) शरणागतमुद्रा, (12) ध्यान मुद्रा, (13) सुची मुद्रा, (14) ओम मुद्रा, (15) जनाना और चीन मुद्रा, (16) अंगुलियां मुद्रा (17) महात्रिक मुद्रा, (18) कुबेर मुद्रा, (19) चीन मुद्रा, (20) वरद मुद्रा, (21) मकर मुद्रा, (22) शंख मुद्रा, (23) रुद्र मुद्रा,(24) पुष्पपूत मुद्रा (25) वज्र मुद्रा, (26) हास्य बुद्धा मुद्रा, (27) प्रणाम मुद्रा, (28) गणेश मुद्रा (29) मातंगी मुद्रा, (30) गरुड़ मुद्रा, (31) कुंडलिनी मुद्रा, (32) शिव लिंग मुद्रा, (33) ब्रह्मा मुद्रा, (34) मुकुल मुद्रा (35) महर्षि मुद्रा, (36) योनी मुद्रा, (37) पुशन मुद्रा, (38) कालेश्वर मुद्रा, (39) गूढ़ मुद्रा, (40) बतख मुद्रा, (40) कमल मुद्रा, (41) योग मुद्रा, (42) विषहरण मुद्रा, (43) आकाश मुद्रा, (44) हृदय मुद्रा, (45)जाल मुद्रा, (46) पाचन मुद्रा, (47). शाम्भवी मुद्रा (48) अश्विनी मुद्रा आदि।

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