धौति क्रिया

धौति, षट्कर्म का एक प्रमुख विधि है। धौति ग्रास (भोजन नली) और पेट का शुद्धिकरण इस विधि को गज-कर्ण के नाम से भी जाना जाता है।

    धौति क्रिया

    धौति कहलाती है

    धौति शरीर के शुद्धिकरण की सामान्य प्रक्रिया है। घेरंड संहिता में धौति को चार प्रकार का माना गया है I धौति, अंत धौति, दन्त धौति, और मूलशोधन,। इसके द्वारा योगीजन अपने शरीर को स्वच्छ बनाते हैं।

    धौति, षट्कर्म का एक प्रमुख विधि है। धौति ग्रास (भोजन नली) और पेट का शुद्धिकरण इस विधि को गज-कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। गज हाथी को कहते हैं। जब हाथी को अपने पेट में उबकायी आती है, तब वह अपनी (ग्रसिका) ग्रीवा में सूंड अंदर तक डाल देता है और पेट के अंदर की वस्तुओं को बाहर निकाल फैंकता है। इस प्रकार यह विधि हमें प्रकृति से ही प्राप्त हुई है। यह विधि पेट में अति अम्लता होने या जब कुछ अपाच्य या बुरा खा लिया हो, तब मिचली से छुटकारा दिलाती है। यह विधि खाद्य प्रति-ऊर्जा (एलर्जी) और दमा भी दूर कर पाती है।

    धौति क्रिया


    जल धौति या कुंजल क्रिया विधि 

    दो लीटर गरम पानी (400 सेन्टीग्रेड) में एक चाय-चम्मच नमक मिलाएं। सीधे खड़े हो जाएं और तेजी से एक के बाद दूसरे गिलास से पूरा पानी पी जाएं। थोड़ा-सा आगे झुकें। बायें हाथ से पेट का निचला भाग दबायें और अनामिका व मध्यमा (दायें हाथ की) अंगुलियों को गले में कुछ अंदर तक डालें। साथ ही जीभ को भी बाहर निकालें जिससे उलटी आ जाए। पूरा पानी आधा मिनट में फिर बाहर आ जाता है।

    यह विधि हर सप्ताह या सप्ताह में दो बार दोहराई जा सकती है और यह प्रात:काल खाली पेट करना सर्वोत्तम है।

    लाभ : उच्च अम्लता, प्रति-ऊर्जा और दमा पर इसका लाभकारी प्रभाव होता है। यह (श्वास की) दुर्गन्ध भी नष्ट करती है।

    सावधानी : उच्च रक्त-चाप या काला पानी (Glucoma) होने पर इसका अभ्यास नहीं करें।

    सूत्र धौति क्रिया विधि  

    पेट के शुद्धिकरण की इस विधि में सूत की एक तीन मीटर लंबी,10 सेमी चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है। इस तकनीक का सर्वप्रथम अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" के शिक्षक के मार्ग दर्शन में ही करना चाहिये।

    लाभ : धौति की तरह ही यह विधि भी पेट को शुद्ध करती है और अति अम्लता को दूर करने में सहायक होती है। यह ऊपरी श्वसन मार्ग को शुद्ध करती है और इस प्रकार दमा, धूल और पराग की प्रति-ऊर्जा (एलर्जी) को दूर करती है।

    धौति के प्रकार

    शरीर की शुद्धि के लिए चार्र प्रकार की धौतियों क वर्णन कियार् है अन्त: धौति,दन्त धौति, ह्द धौति और मूलशोधन के भेद से धौति कर्म चार्र प्रकार क मार्नार् गयार् है।

    अन्त धौति

    इसमें चार प्रकार के अभ्यास बतलाए हैं

    ( i ) वायु को अंदर मुंँह से खींच कर मलद्वार के रास्ते से निकालना।

    (ii) अमाशय को जल से भरकर इसकी सफाई करना।

    (ii)उदर में अग्नि तत्व को नाभिप्रदेश को लगातार तेजी के साथ आगे -पीछे करते हुए शरीर में बढ़ाना।

    (iv) बड़ी आंत को मलद्वार के रास्ते से शरीर से बाहर निकाल कर सफाई करना।

    वस्तुत: शरीर और मन को विकार रहित बनार्ने के लिए शुद्धिकरण अत्यन्त आवश्यक है। विविध रोग भी अशुद्धि की अवस्थार् में ही जन्म लेते हैं। अन्त: धौति क अर्थ है- अन्त: अर्थार्त आन्तरिक यार् भीतरी तथार् धौति क कार्य है धोनार् अर्थार्त आन्तरिक सफार्ई के रूप में अन्त: धौति क प्रयोग कियार् जार्तार् है। अन्त धौति के चार्र प्रकार हैं।

    धौति का अर्थ होता है आंतरिक सफाई यह चार प्रकार से किया जाता है। दन्त धौति का शाब्दिक अर्थ है Iशीर्ष प्रदेश की सफाई। हृदय धौती का अर्थ होता है। हृदय प्रदेश की सफाई। अन्ननलिका एवं फेफड़े आदि की सफाई हृदय धौती के माध्यम से होती है। गुदाद्वार ,बड़ी आंत, मूत्र, नालिकाओं अर्थात मूल भाग की सफाई को मूलशोधन के नाम से जाना जाता है। इन सभी क्रिया को धौती कहते हैं।

    वार्तसार्र अन्त धौति

    मुंह से वायु पीकर जठर को नवजीवन प्रदान करने की विधि है। भुजंगिनी मुद्रा में भी यह क्रिया की जाती है। पेट में कुछ देर हवा को घुमाया जाता है। तत्पश्चात जंभाई लेते हुए धीरे-धीरे वायु का निकास किया जाता है। इस अभ्यास से अनेक उदर रोग दूर होते हैं।

    वार्त अर्थार्त हवार् यार् वार्यु और सार्र क अर्थ है तत्व अर्थार्त वार्यु तत्व से अन्त:करण की सफार्ई करनार् वार्तसार्र अन्त: धौति क प्रमुख उददेश्य है। महर्षि घेरण्ड ने घेरण्ड संहितार् में वार्तसार्र धौति की निम्न विधि बतार्ई है। काकचक्ष्चु वदार्स्येार्न पिबेद्धार्युं शनै शनै अर्थार्त कौवे की चोंच के समार्न दोनों ओठों को करके शनै: शनै: वार्यु को पीयें। पूर्णरूप से पार्न कर लेने पर पेट में उसक परिचार्लन करें और फिर उस वार्यु को निकाल दे।

    प्राक्रिया-

    • सर्वप्रथम किसी अभ्यस्थ ध्यार्न के आसन में बैठ जार्ये। 
    • कमर सिर व गर्दन को एकदम सीधार् रखें। 
    • मुंह से कौवे की चोंच सार् आकार बनार्यें।
    • धीरे-धीरे वार्यु क पार्न करते हुए पेट में भरने क प्रयत्न करें।
    • जब पूरी “वार्स से पेट भर जार्ये तब शरीर ढीलार् कर वार्यु को उदर में घुमार्यें
    • धीरे.धीरे “वार्स को दोनों नार्सार्छिद्रों से बार्हर निकाल दें।

    लाभ –

    • इस गोपनीय क्रियार् से शरीर निर्मल होतार् है।
    • यह कफ दोश को दूर करती है।
    • सभी रोगों को नष्ट करती है।
    • पार्चन शक्ति को बढार्ती है तथार् जठरार्ग्नि को भी तेज करती है।
    • अम्लर पित्त में बेहद लार्भकारी है।

    सावधानि –

    • यह क्रियार् हमेशार् खार्ली पेट करें।
    • यह अभ्यार्स अधिकतम पॉंच बार्र ही करनार् चार्हिए।
    • अधिक वृद्ध व्यक्ति कमजोर व्यक्ति यह अभ्यार्स न करें।
    • हृदय रोगी यार् कोई बडार् आपरेशन हुआ हो तो वह व्यक्ति इस अभ्यार्स को न करे।

    वरिसार्र अन्त: धौति

    वार्रि अर्थार्त जल तथार् सार्र क अर्थ है तत्व इस धौति में जल तत्व से अन्त:करण की सफार्ई की जार्ती है अत इसे वार्रिसार्र अन्त: धौति कहार् जार्तार् है।

    प्राक्रिया- 

    • इस क्रियार् को शंखप्रक्षार्लन भी कहते हैं।
    • एक बार्ल्टी में गुनगुनार् पार्नी लें तथार् उसमें स्वार्दार्नुसार्र नमक डार्ल दें।
    • सर्वप्रथम दो गिलार्स गुनगुनार् पार्नी पीये फिर निम्न पॉंच आसन त्वरित गति से करें। तार्डार्सन • तिर्यक तार्डार्सन • कटि चक्रार्सन • तिर्यक भुजगार्ंसन • उदरार्कर्षण
    • फिर पुन: 2 गिलार्स पार्नी पीकर उपरोक्त आसनों को करें।
    • जब तक शौच की इच्छार् न हो उन क्रियार् दोहरार्ते रहें। (5) 10-15 गिलार्स पार्नी पीकर जब उक्त क्रियार् हो जार्ये तो विश्रार्म करें। 

    नोट- 

    उक्त यौगिक क्रियार् क वर्णन आपको सिर्फ अध्ययन करने के लिये बतार्यार् जार् रहार् है। इस क्रियार् को कुशल मागदर्शन में ही करें।

    लाभ- 

    • यह शरीर की शुद्धि की सबसे महत्वपूर्ण क्रियार् है इसके मुख्य लार्भ है-ं
    • इस क्रियार् से समस्त पार्चन संस्थार्न की सफार्ई होती है।
    • शरीर में अपशिष्ट पदाथ (मल) पूर्ण रूप से निकल जार्तार् है।
    • इस क्रियार् से देव देह की प्रार्प्ति होती है।
    • योगी देवतार् के समार्न दिव्य, कान्तिमार्न, ओजस्वी हो जार्तार् है।
    • मोटार्पे को कम करतार् है तथार् शरीर हल्क हो जार्तार् है।

    सावधानि –

    • इस अभ्यार्स को हमेशार् कुशल, योगगुरू के सलार्ह में ही करें।
    • उच्च रक्तचार्प ह्दय रोग में यह अभ्यार्स सोंफ के पार्नी के सार्थ उचित मागदर्शन में कियार् जार्तार् है।
    • गर्भवती स्त्री, हानियार् से पीडित व्यक्ति बिल्कुल इस अभ्यार्स को न करें।
    • अभ्यार्स के बार्द व पहले दिन से ही रसार्हार्र पतली खिचडी क सेवन ही करनार् चार्हिए।
    • चूंकि वार्रिसार्र धौति (शंखप्रक्षार्लन) से शरीर नार्जुक हो जार्तार् है। अत: 40 दिनों तक कोई एलोपैथिक दवार्इयों क सेवन नार् करें।

    अग्निसार्र अन्तं: धौति

    अग्नि शब्द से आप सर्वविदित होगें और सार्र क अर्थ है तत्व चूंकि इस अभ्यार्स से जठरार्ग्नि बढती है तथार् पार्चन क्रियार् बढती है इसलिए इसे अग्निसार्र अन्त: धौति कहार् जार्तार् है।

    प्राक्रिया-

    • वज्रार्सन, अर्धपद्मार्सन यार् सिंहार्सन में बैठें।
    • रीढ की हडडी एक सीध में रखिए।
    • दोनों हार्थ को तार्नकर घुटनों में रखिए।
    • मुंह खोलकर जीभ बार्हर निकालकर पूरी “वार्स को बार्हर निकाल दीजिए।
    • “वार्स को बार्हर रोककर पेट को जल्दी-जल्दी अन्दर-बार्हर करें। यह प्रयार्स रहे कि नार्भि प्रदेश पृष्ठ भार्ग पर लगे।
    • कुछ पल आरार्म के बार्द इस क्रियार् को पुन: उचित मागदर्शन में दोहरार्ये।

    लाभ

    • पार्चन सम्बन्धी विकारों को नष्ट करतार् है।
    • उदर गत मॉसपेशियों को मजबूत बनार्तार् है।
    • जठरार्ग्नि को तेज कर पार्चक रसों क नियंत्रण करतार् है।
    • मार्नसिक रोंगों में अवसार्द की अन्तर्मुखी अवस्थार् में लार्भकारी है।
    • योग के आध्यार्त्मिक लार्भ कुण्डलीनी जार्गरण में भी सहार्यक है।

    सावधानि –

    • वस्तुत: योग की सभी क्रियार्यें खार्ली पेट की जार्नी हैं। अत: भोजन के बार्द इसे नही करें।
    • उच्चत चार्प व ह्दय रोगी इस अभ्यार्स को बिल्कुल नार् करें।
    • अल्सर, हानियॉ, दमार् के रोगियों के लिए वर्जित है।
    • शार्रीरिक क्षमतार् के अनुसार्र गुरू के निर्देश में ही करें।

    बहिष्कृत अत:धौति

    बहिष्कृत क अर्थ त्यार्गने छोडने यार् निकालने के अर्थ में प्रयोग होतार् है। इस धौति में अन्त.करण से अवशिष्ट वार्यु को गुदार् माग से बार्हर निकालते हैं। महर्षि घेरण्ड, घेरण्ड संहितार् 1/21 में कहते है- अर्थार्त कौवे की चोंच के समार्न ओठों को करके उनके द्धार्रार् वार्यु-पार्न करते हुए उदर को भर लें। उस पार्न की हुई वार्यु को आधे प्रहर (1) घंटे तक उदर में रोक कर परिचार्लित करते हुए अधोमाग से निकाल दें। यह परम गोपनीय वहिष्कृत धौति कहलार्ती है।

    प्राक्रिया- 

    • यह क्रियार् सहज नही की जार् सकती एक योग्य शिक्षक की देखरेख में करें अन्यथार् परेषार्नियॉ हो सकती है।
    • ध्यार्न के कोई आसन में बैठ जार्ये
    • दोनों हार्थों को घुटने पर रखें।
    • काकी मुद्रार् (कोवे की चोंच के समार्न) में वार्यु क धीरे-धीरे पार्न करें।
    • 1 घंटे वार्यु क परिचार्लन पेट पर होने दें। अन्त में अधोमाग से उसे बार्हर निकाल दें।

    लाभ-

    • उदरगत विकार दूर होते है।
    • शरीर हल्का, कान्तिमार्न हो जार्तार् है।
    • कुण्डलीनी शक्ति जार्गरण में लार्भकारी है।
    • प्रजनन संस्थार्न को बलिष्ठ बनार्ती हैं।

    सावधानि- 

    वही व्यक्ति इस अभ्यार्स को करे जिसे 1 घंटे “वार्स रोकने क अभ्यार्स हो। इसे एक योगी ही कर सकतार् है। अत: इस अभ्यार्स में विशेष मागदर्शन की आवश्यकतार् है।


    दन्त धौति

    सार्मार्न्य रूप से आप दन्ते धौति क अर्थ दॉतों की सफार्ई के रूप में समझ रहे होगें। लेकिन दन्त-धौति को महर्षि घेरण्ड ने शीर्ष प्रदेश की सम्पूर्ण स्वच्छतार् के रूप में प्रयुक्त है। इस धौति के प्रकार है।

    दन्त मूल धौति

    दन्त मूल अर्थार्त दॉतों की जड और धौति क अर्थ है धोनार्। अर्थार्त इस अभ्यार्स में दॉतों की जड की स्वच्छतार् की जार्ती है।

    प्राक्रिया- 

    • प्रार्चीन समय में दन्तमंजन चूर्ण बनार्ने की विधि आयुर्वेद में बतार्ई गई है। 
    • दन्तमंजन चूर्ण के अलार्वार् शुद्ध चिकनी मिट्टी (जिसे घर में लिपने में प्रयोग करते हैं) यार् खार्दिर (कत्थे) के रस को मिट्टी में मिलार्कर तर्जनी अंगुली से दॉतों की जडों को सार्फ करते हैं। 
    • फिर शुद्ध पार्नी से कुल्लार् कीजिए। 
    • यह क्रियार् प्रार्त:काल व सार्ंय भोजन के बार्द भी की जार् सकती है।

    लाभ- 

    नित्य इस अभ्यार्स को करने से दॉतों की सफार्ई तो होती ही है सार्थ ही सार्थ दॉतों मं फॅसार् मल भोजन के टुकडे बार्हर निकल जार्ते है। मुंह में कहीं छार्ले पडे हो तो खार्दिर क रस औषधि क काम भी करतार् है।

    सावधानि-

    • जिस भी चूर्ण (दंत मंजन, खार्दिर, मिट्टी) क उपयोग कर रहे हो वह बार्रीक पीसार् गयार् हो।
    • दॉतों में पीब, कीडे यार् छेद हो तो आयुर्वेदिक औषधि चिकित्सार् के बार्द ही इस अभ्यार्स को करें।

    विशेष:- 

    दन्त मंजन चूर्ण बनार्ने की एक सस्ती व सरल प्रक्रियार् है। बार्दार्म के छिलकों को आग में जलार्कर कोयलार् बनार् लें फिर उस कोयले क पार्उडर बनार्कर उसमें पीसी लोंग, सेंधार् नमक, नीम के पत्तों क पार्उडर मिलार् दें। इस चूर्ण क प्रयोग भी दॉतों के लिए लार्भकारी है।

    जिहवार्शोधन धौति

    जीभ के शोधन की यह प्रकियार् जीभ की लम्बार्ई बढार्ने तथार् अनेकानेक रोगों में लार्भकारी है।

    प्राक्रिया- 

    यह एक सहज प्रक्रियार् है दोहन क्रियार् में जीभ में मक्खन डार्ल लें। बार्जार्र में प्लार्स्टिक यार् स्टील की जिºवार् निर्लेखनी मिलती है उससे भी जीभ की सफार्ई की जार् सकती है।

    लाभ –

    • इस क्रियार् से जीभ की लम्बार्ंई बढती है जिससे भार्षार् की स्पष्टतार् रहती है।
    • जीभ के दोहन से गले व “वार्स नली में एकत्र श्लेष्मार् निकल जार्तार् है।
    • इससे व्यार्धि, बुढार्पार् व मृत्यु को दूर भगार्यार् जार् सकतार् है।
    • खेचरी मुद्रार् की सिद्धि में लार्भकारी है।

    सावधानि-

    • जीभ में छार्ले हो तो इस अभ्यार्स को नही करें।
    • अपनी अंगुलियों को मुंह के ज्यार्दार् अन्दर नार् डार्लें।
    • नार्खुन अवश्य कटे हो अन्यथार् मैल तो जार्येगार् ही स्वर यंत्र यार् मुंह में चोट लग सकती है।

    कर्णरन्ध्र धौति

    चुंकि इससे कान के छिद्रों की सफार्ई की जार्ती है इसलिए इसे कर्णरन्ध्र धौति कहते हैं।

    प्राक्रिया- 

    • तर्जनी या अनार्मिक अंगुली को गीलार् कर लें। 
    • तद्पश्चार्त कान के अन्दर डार्लकर उसे घुमार्यें अंगुली को गीलार् करने के लिए सरसों के तेल में लहसुन डार्लकर उसक उपयोग भी कर सकते हैं।

    लाभ- 

    कानों की सफार्ई होती है दिव्यं नार्द की अनुभूति होती है इसलिए इसके अध्यार्त्मिक लार्भ भी हैं।

    सावधानि –

    • मार्चिस की तिल्ली से इस क्रियार् को नार् करें।
    • अंगुलियों के नार्खुन अवश्य कटें होने चहिए।

     कलार्लरन्ध्र धौति

    कपार्लरन्ध्र अर्थार्त नवजार्त बच्चे के सिर पर वह स्थार्न जो पिचकतार् महसूस होतार् है उस स्थार्न की इससे सफार्ई होती है। अत: इसे कपार्लरन्ध्र धौति कहते हैं।

    प्राक्रिया- 

    इस धौति की विधि स्पष्ट है दार्हिने हार्थ क कटोरार् बनार्कर उसमें पार्नी भरे तथार् शीर्ष प्रदेश (ब्रह्मरन्ध्र) पर धीरे-2 थपकी दें।

    लाभ –

    • मस्तिष्क में शीतलतार् प्रदार्न होती है मोतियार्बिन्द में लार्भकारी है।
    • दूर व निकट दृष्टि दोष दूर होते है।
    • कफ दोषों (सदÊ, खार्ंसी) में लार्भकारी है।
    • उच्चरक्त चार्प में इस धौति से लार्भ मिलतार् है।
    • गर्मियों में इस अभ्यार्स को करने से शीतलतार् मिलती है।

    सावधानि  – 

    इस अभ्यार्स में विशेष सार्वधार्नी की जरूरत नही है फिर भी जार्ड़ों में इसक प्रयार्स वर्जित है। छोटे बच्चों को इस अभ्यार्स करार्ने के लिए योग शिक्षक से सलार्ह अवश्य लें।

    हृद धौति

    हृद क अर्थ है हृद दय और धौति क अर्थ है धोनार् इस धौति से हृद य प्रदेश, अन्न नलिका, आमार्शय की सफार्ई होती है इसलिए इसे ºदधौति कहते हैं इसके तीन भेद हैं।

    दंड धौति क्रिया

    दण्ड अर्थार्त ठंडार् और धौति अर्थार्त धौनार् इस धौति में हल्दी केले के मृदु भार्ग के ठंडे से अन्त: प्रदेश की सफार्ई की जार्ती है।

    प्राक्रिया- 

    • परम्परार्गत रूप से दण्ड धौति के लिए केले, बेंत यार् हल्दी के मृदु भार्ग को लेते हैं पर आधुनिक समय में रबर की दण्ड भी बार्जार्र में उपलब्ध रहती है। दण्ड धौति को प्रयोग करने से पहले अच्छीे तरह उबार्ल लें।
    • सर्वप्रथम 4-5 गिलार्स स्वच्छ जल (नमकीन) पी लें।
    • शनै: शनै: रबर, हल्दी, बेंत की दण्ड (जो उपलब्ध हो) मुंह खोलकर आभार्शय तक डार्लें।
    • फिर थोड़ार् आगे झुकें पूरार् जल दण्ड के अगले छोर से आने लगेगार्।
    • तदुपरार्न्त धीरे-2 दण्ड को बार्हर निकाले तथार् इसके सार्थ कफ, पित्त, श्लेष्मार्, जो भी निकले उसे बार्हर थूक दें।

    लाभ –

    • कफ, पित्त, क्लेद क निष्काषन इस क्रियार् से होतार् है।
    • अम्ल पित्त, दवार् में यह अभ्यार्स लार्भकारी है।
    • फेफड़े की क्षमतार् बढ़ती है हृदय रोग में भी लार्भकारी है।

    सावधानि –  

    यहॉ पर दण्ड धौति क वर्णन मार्त्र एक विधि मार्नकर कियार् है हर व्यक्ति इस अभ्यार्स के योग्य नही है योग शिक्षक की देखरेख में ही इस अभ्यार्स को करें।

    वमन धौति 

    वमन क अर्थ उल्टी करने से है।

    प्राक्रिया-

    • सर्वप्रथम बैठकर बिनार् रूके हुए गुनगुनार् नमकीन जल इच्छार्नुसार्र 5/ 7 / 10 गिलार्स तक दिये।
    • फिर उठकर तर्जनी, मध्यमार् व अनार्मिक ऊंगली को गले तक डार्लकर वमन करे।
    • अंगुलियों को पुन: मुंह के भीतर ले जार्ये यह क्रियार् तब तक दोहरार्यें जब तक पेट खार्ली नार् हो।

    लाभ-

    • आभार्शय को स्वच्छ कर विकार रहित बनार्ती है।
    • कफ, पित्त, क्लेद को बार्हर निकालती है।
    • अत्रीर्ण, अम्लपित्त में लार्भकारी है।
    • दमार् के रोगी को कफ के विरेचन हो जार्ने के कारण लार्भ मिलतार् है।

    सावधानि-

    • पार्नी गुनगुनार् नमक युक्त व स्वच्छ हो।
    • हार्थ के नार्खुन पूरे कटे होने चार्हिए।
    • हानियार् व कमर दर्द में इस अभ्यार्स को नार् करें।

    वार्सन धौति (वस्त्र धौति)

    वार्सन अर्थार्त वस्त्र (कपडे) की पट्टी से इससे पार्चन संस्थार्न की सफार्ई की जार्ती है। इसलिए इसे वस्त्र धौति कहते हैं।

    प्राक्रिया –

    • चार्र अंगुल चौढ़ार् व 3-4 मीटर लम्बार् सूती कपड़ार् लीजिए।
    • उसे एक पार्त्र (लोहे गिलार्स, कटोरी) में रखकर भिगार् दें। (
    • एक छोर को पकड़कर धीरे-धीरे उसे निगले बीच-बीच में स्वच्छ जल अवश्य पियें।
    • जब अन्तिम छोर बचार् हो फिर धीरे-धीरे उसे बार्हर निकाल दें।

    लाभ-

    • कफ, क्लेद क निष्कासन होतार् है।
    • दमार् के रोगी के लिए यह क्रियार् रार्मवार्ण है।
    • वार्यु विकार, बुखार्र, चर्मरोग में लार्भकारी है।
    • उदरगत व्यार्ंधियॉ दूर होती हैं। जठरार्ग्नि बढ़ती है।

    सावधानि –

    • यह कठिन क्रियार् है इसे योग्य योग शिक्षक के मागदर्शन में करे।
    • अगर वस्त्र धौति करते हुए 5 मिनट हो जार्ये तो फिर उसे बार्हर निकाल दें अन्यथार् व अॉतों की ओर जार् सकती है।
    • कपड़े को निगलते समय जीभ में सटार्कर रखें।
    • कोशिश यह करें कि निगलते समय कपड़े में लार्र अवश्य मिले जिससे निगलने में सुविधार् होगी।

    मूलशोधन

    मूल क्षेत्र अर्थार्त शरीर क मूल भार्ग (गुदार्) की इस अभ्यार्स से सफार्ई होती है।

    प्राक्रिया:- 

    हल्दी की नरम जड़ से या अनार्मिक अंगुली में घी लगार्कर गुदार् क्षेत्र में डार्लें हल्दी की जड़ रोगार्णुरोधक होने के कारण उपयुक्त है दो-चार्र बार्र इस क्रियार् को दोहरार्यें।

    लाभ-

    • उत्सर्जन तन्त्र को बलिष्ठ करतार् है इस क्रियार् से नार्ड़ी और कोशिकाओं की ओर रक्त संचार्र तेज होतार् है।
    • कब्ज में यह अभ्यार्स लार्भकारी है।
    • अपार्न वार्यु क संतुलन करती है।
    • इस धौति से पार्चन संस्थार्न के रोगों में भी लार्भ मिलतार् है।

    सावधानि-

    • अंगुली के नार्खून अच्छी तरह काट लें।
    • बवार्सीर के रोंगियो को अंगुली मूल प्रदेश में डार्लते समय बेहद सार्वधार्नी बरतनी चार्हिए।
    • योग्य गुरू की सलार्ह में ही इस अभ्यार्स को करें।