त्राटक क्रिया

एकाग्रता की साधना को परिपक्व बनाने के लिए त्राटक एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । त्राटक का अर्थ है

    त्राटक क्रिया

    त्राटक की पूरी विधि

    जिसके पास एकाग्रता के तप ता खजाना है, वह योगी रिद्धि-सिद्धि एवं आत्मसिद्धि दोनों को प्राप्त कर सकता है । जो भी अपने महान कर्मों के द्वारा समाज में प्रसिद्ध हुए हैं, उनके जीवन में भी जान-अनजाने एकाग्रता की साधना हुई है । विज्ञान के बडे-बडे आविष्कार भी इस एकाग्रता के तप के ही फल हैं ।

    त्राटक क्रिया


    एकाग्रता की साधना को परिपक्व बनाने के लिए त्राटक एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । त्राटक का अर्थ है किसी निश्चित आसन पर बैठकर किसी निश्चित वस्तु का एकटक देखना ।

    त्राटक कई प्रकार के होते हैं । उनमें बिन्दु त्राटक, मूर्ति त्राटक एवं दीपज्योति त्राटक प्रमुख हैं । इनके अलवा प्रतिबिम्ब त्राटक, सूर्य त्राटक, तारा त्राटक, चन्द्र त्राटक आदि त्राटकों का वर्णन भी शास्त्रों में आता है । 

    विधि :

    एक मोमबत्ती के सामने ध्यान मुद्रा में बैठें। मोमबत्ती को लगभग अपने से एक हाथ की दूरी पर रखें जिसमें मोमबत्ती की बाती आपकी छाती की ऊंचाई पर ही हो। यदि मोमबत्ती बहुत अधिक ऊंचाई पर रख दी जाये तो यह आपके भौहों के केन्द्र पर तनाव उत्पन्न कर सकती है या आंखों में जलन कर सकती है। लौ स्थिर होनी चाहिए और यह कभी कम ज्यादा न हो। अपनी आंखें बंद कर लें। मन में अपना मंत्र दोहरायें जैसा ध्यान मुद्रा में करते हैं।

    आंखें खोलें और बिना पलक झपकाये लौ को देखें। लौ में रंग के तीन अंश हैं। बाती के निचले भाग पर लालिया रंग है, मध्य में यह चमकदार सफेद और सबसे ऊपर थोड़ा सा धुंधला है। लौ के ऊपरी भाग पर दृष्टि को एकाग्र करें जहां यह सबसे अधिक चमकदार है।

    आंखों को फिर बंद कर लें। यदि लौ कि प्रतिमा भीतर दिखाई देती है तो बिना किसी तनाव के उस प्रतिमा पर एकाग्र हों। प्रतिमा के पीछे जाने का या उसे पकडऩे का कोई प्रयत्न न करें। अन्यथा यह धुंधली होने लगेगी और ओझल हो जायेगी।

    यह अभ्यास तीन बार दोहरायें।

    अभ्यास का समय धीरे-धीरे बढ़ाते जायें। प्रारम्भिक चरणों में लौ पर केवल 10-15 सैकण्ड ही देखें। धीरे-धीरे इस अवधि को बढ़ायें, जिससे लगभग 1 वर्ष बाद आप लौ की ओर एक मिनट के लिए देख सकें और फिर बंद आंखों से आप आन्तरिक प्रतिमा पर लगभग 4 मिनट के लिए ध्यान एकाग्र कर सकें। अभिशंसा की गई है कि किसी भी परिस्थिति में यह समय सीमा बढ़ाई नहीं जानी चाहिए।

    कोई व्यक्ति त्राटक का अभ्यास काले कागज पर एक सफेद बिन्दु को देखते हुए या सफेद कागज पर काले बिन्दु पर देखते हुए भी कर सकता है। जब कोई सफेद बिन्दु पर दृष्टि एकाग्र करता है, वह आंखें बन्द होने पर इसे काली प्रतिमा के रूप में देखता है और काला बिन्दु होने पर यह उलटा हो जाता है।

     त्राटक के फायदे / त्राटक के चमत्कार

    • आंखों की रोशनी तेज होती है।
    • नकारात्मक विचारों सो मुक्ति मिलती है।
    • एकाग्रता बढ़ती है।
    • गुस्सा कम आने में करें मदद।
    • खोई हुई रोशनी वापस लाए
    • अनिद्रा की शिकायत खत्म होती है।
    • मस्तिष्क की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
    • मानसिक शांति मिलती है।
    • सिरदर्द, माइग्रेन आदि से निजात मिलता है।

    सावधानी :

    • त्राटक साधना में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक है । शक्ति का संचय ही साधना है ।
    • स्नानादि अच्छे से करें । क्योंकि शरीर की शुद्धि अच्छे से होना आवश्यक है ।
    • आंखों का विशेष ध्यान रखना है ।
    • आंखों को नियमित रूप से सुबह दोपहर और शाम को गुनगुने पानी से साफ करते रहिए ।
    • विचार शुद्ध होने चाहिए ।
    • नकारात्मक विचार कभी नहीं करने चाहिए ।
    • खानपान में नियंत्रण होना चाहिए ।
    • तीखी तमतमती मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहिए ।
    • हर दिन निश्चित किए गए समय पर ही त्राटक करना चाहिए ।
    • त्राटक का अभ्यास शुरू करने से पहले प्राणायाम करना चाहिए ।
    • त्राटक का अभ्यास करते वक्त अपनी आंखों पर जोर जबरदस्ती बिल्कुल ना करें ।
    • कोई भी त्राटक हो अगर आपने वह शुरू किया है तो कम से कम 1 महीना जरूर करें ।
    • कमरे में ना तो ज्यादा लाइट होनी चाहिए और ना ही ज्यादा अंधेरा होना चाहिए ।
    • त्राटक अभ्यास के समय का वातावरण शांत होना चाहिए ।
    • कमरे का वातावरण खुशबूदार करने के लिए आप एकआदी अगरबत्ती लगा सकते हो ।
    • कमरे में ज्यादा समान नहीं होना चाहिए ।
    • कमरा एकदम साफ सुथरा होना चाहिए ।
    • त्राटक का अभ्यास आप चटाई पर बैठकर कर सकते हो ।

    त्राटक क्रिया के नुकसान

    त्राटक क्रिया के नुकसान त्राटक के अभ्यास में आपका मन कई बार भटक जाएगा । कई अनेक प्रकार के विचार में खो जाएगा। आपको किसी भी तरह करके अपने मन को त्राटक साधना में ही लगाना है । अकेली आंखों से कुछ नहीं होता है ।

    सूर्य त्राटक के फायदे

    भारतीय योग शास्त्र के अनुसार इसके लिए चमकते प्रकाश का उपयोग करना उपयुक्त माना गया है। सूर्य, चन्द्र, त्राटक आदि प्राकृत प्रकाश पिंडों को तथा दीपक जैसे मानव कृत प्रकाश साधनों को काम में लाने का विधान है।

    सूर्य की ज्योति अत्यन्त तीव्र होती है। खुली आँखों से उसे देखने में हानि होती है, इसलिए सूर्य त्राटक मात्र ध्यान द्वारा ही किया जा सकता है। खुले नेत्रों से नहीं। लगभग यही बात चन्द्रमा के सम्बन्ध में भी है। उसका प्रकाश यों सूर्य के समान तीखा तो नहीं होता फिर भी नेत्र विज्ञान के अनुसार किसी भी प्रकाश को लगातार देखते रहना हानिकारक है। प्राचीन मान्यताओं और आधुनिक शोधों में यह मौलिक अन्तर सामने आया है। खुले नेत्रों से लगातार अश्रु पर्यन्त देखते रहने की बात शरीर शास्त्री स्वीकार नहीं करते और हानिकारक बताते हैं। तारागणों को प्रकाश का माध्यम बनाकर त्राटक साधना करने में भी कई कठिनाइयाँ है। तारे मात्र रात्रि को निकलते हैं। बदली , कुहरा, धुन्ध, धुँआ छा जाने पर वे रात्रि में भी नहीं दीखते । जिन्हें खुला आसमान उपलब्ध है वे ही तारों को देखने का लाभ ले सकते हैं । उन्हें लेटकर या तिरछे होकर ही देखा जा सकता है जब कि साधनाओं में मेरुदण्ड सीधा रखने का विधान है। साधक को सुविधा का समय दिन में हो तो तारे कहाँ मिलेंगे? फिर तारे कितने ही होते हैं। त्राटक के लिए एक ही प्रकाश बिन्दु चाहिए कई बिन्दु होने पर दृष्टि भटकती है। इन सब कारणों को देखते हुए सिद्धांतत भले ही सूर्यः चन्द्र तारकों की बात कही जा सके

    व्यवहारतः वे तीनों ही अनुपयुक्त है। यदि इन्हीं का उपयोग करना हो तो एक सेकेण्ड तक उन्हें देखने के उपरान्त तत्काल नेत्र बन्द कर लेने और फिर ध्यान धारणा से ही प्रकाश पर एकाग्रता का अभ्यास करना चाहिए।

    त्राटक के अभ्यास में दीपक का प्रयोग ही अधिक उपयुक्त है। धृत दीप का उपयोग कई दृष्टि से अधिक उपयुक्त माना गया है। पर यह होना शुद्ध ही चाहिए, मिलावटी या नकली घी की अपेक्षा शुद्ध तेल अधिक उत्तम है। मोमबत्ती का उपयोग भी किया जा सकता है। कम पावर के रंगीन बल्ब भी इस प्रयोजन की पूर्ति कर सकते हैं।

    इनमें से जो भी उपकरण काम में लाना हो, उसे छाती की सीध -चार से दस फुट तक की दूरी पर रखना चाहिए। पीछे काला, नीला या हरा पर्दा टँगा हो अथवा इन रंगों से दीवार रंगी हों । प्रकाश ज्योति के इर्द-गिर्द न्यूनतम वस्तुएँ हों अन्यथा ध्यान उनकी ओर बिखरेगा।

    त्राटक के लिए प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम है। यों उसे रात्रि को भी किया जा सकता है॥ दिन में सूर्य का प्रकाश फैला रहने से यह साधना ठीक तरह नहीं बन पड़ती हैं । यदि दिन में ही करनी हो तो अँधेरे कमरे का प्रबन्ध करना होता है।

    साधना के लिए कमर सीधी, हाथ गोदी में, पालथी सही-रखकर बैठना चाहिए। वातावरण में घुटन दुर्गन्ध, मक्खी, मच्छर जैसे चित्त में विक्षोभ उत्पन्न करने वाली बाधाएँ नहीं हो। यह अभ्यास दस मिनट में आरम्भ करके उसे एक-एक मिनट बढ़ाते हुए एक दो महीने में अधिक से अधिक आधे घण्टे तक पहुँचाया जा सकता है। इससे अधिक नहीं किया जाना चाहिए ।

    खुले नेत्र से प्रकाश ज्योति को दो से पाँच सेकेण्ड तक देखना चाहिए और आँखें बन्द कर लेनी चाहिए। जिस स्थान पर दीपक जल रहा है उसी स्थान पर उस ज्योति को ध्यान नेत्रों से देखने का प्रयत्न करना चाहिए। एक मिनट बाद फिर नेत्र खोल लिए जाय और पूर्ववत् कुछ सेकेण्ड खुले नेत्रों से ज्योति का दर्शन करके फिर आँखें बन्द कर ली जाय। इस प्रकार प्रायः एक-एक मिनट के अन्तर से नेत्र खोलने और कुछ सेकेण्ड देखकर फिर आँखें बन्द करने और ध्यान द्वारा उसी स्थान पर ज्योति दर्शन की पुनरावृत्ति करते रहनी चाहिए।

    मिनटों और सेकेण्डों का सही निर्धारण उस स्थिति में नहीं हो सकता। घड़ी का उपयोग कर सकने की वह स्थिति होती ही नहीं। अनुमान पर ही निर्भर रहना पड़ता है। अलग समय में अनुमान के सही होने का अभ्यास घड़ी के सहारे किया जा सकता है। मोटा आधार यह है कि जब नेत्र बन्द कर लेने पर प्रकाश ज्योति का दर्शन झीना पड़ने लगे तो स्मृति को पुनः सतेज करने के लिए आँख खोलने और ज्योति देखने का प्रयत्न किया जाय। आमतौर ने नेत्र खोल कर देखने के उपरान्त जब पलक बन्द किये जाते हैं तो ध्यान में प्रकाश अधिक स्पष्ट होता है। धीरे-धीरे वह झीना धुँधला होता है। उसे फिर से सतेज करने के लिए ही खुली आँख से ज्योति देखने की आवश्यकता पड़ती है। हर मनुष्य की मस्तिष्कीय संरचना अलग-अलग प्रकार ही होती है। किसी को एक बार का प्रत्यक्ष दर्शन बहुत देर तक ध्यान में प्रकाश की झाँकी कराता रहता है। किसी की स्मृति जल्दी धुँधली हो जाती है। स्थिति का निरीक्षण स्वयं करना चाहिए और आवश्यकतानुसार जल्दी-जल्दी या देर-देर में आँखें खोलने बन्द करने का क्रम निर्धारण करना चाहिए। उद्देश्य यह है कि त्राटक के साधना काल में ध्यान भूमिका को लगातार प्रकाश ज्योति की झाँकी होती रहे। धुँधलेपन का हटाने के उद्देश्य से ही नेत्रों को खोलने, बन्द करने की प्रक्रिया अपनाई जाय।

    त्राटक का उद्देश्य दीपक पूजा नहीं वरन् ध्यान भूमिका में प्रखरता उत्पन्न करना है ताकि चिन्तन के आधार पर प्रकाश बिन्दु देव प्रतिमा की स्पष्ट झाँकी कर सकना सम्भव हो सके। मंद एवं भोंथरे चिन्तन प्रक्रिया में कोई ध्यान प्रतिमा स्पष्ट रूप से नहीं उभरती। कल्पना चित्र स्पष्ट नहीं होते। तब एकाग्रता का एक महत्त्वपूर्ण मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। ऐसी दशा में नादयोग आदि से किया जाने वाला शब्दयोग एवं ध्यान धारणा के आधार पर किया गया बिन्दुयोग में से एक भी सफल नहीं होता। तब मात्रा प्रत्यक्ष प्रतिमाओं को देखकर- कीर्तन गायन तथा श्रवण सत्संग आदि स्थूल उपायों में मन की भगदड़ रोकने के मोटे प्रयोग किये जाते हैं । जप, पाठ की जिह्वा प्रक्रिया तो पूरी होती रहती है, पर ध्यान के अभाव में उनमें भी रस उत्पन्न नहीं हो पाता। त्राटक द्वारा चिन्तन तन्त्र को कल्पना संस्थान को प्रखर बनाने में जितनी सफलता मिलती है उतना ही आत्मिक प्रगति के लिए की जाने वाली साधनाएँ सरल एवं सफल होने लगती है। अस्त त्राटक को - ध्यानयोग को प्रथम प्रक्रिया माना गया हैं।