पित्त दोष
पित्त क्या है
पित्त हमारे शरीर में पीले रंग का द्रव है जो पाचन में सहायक होता है तथा इसका संबंध शरीर की गर्मी से है। पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है | पित्तनलिका जिगर से निकलकर जहां पर आंत में मिलती है | पित्त धातू शरीर में होने वाले किसी भी इन्फेक्शन से भी शरीर की रक्षा करती है | इस पोस्ट में हम जानेगे की पित्त प्रधान व्यक्ति के लक्षण और पित्त अगर असंतुलित हो जाये तो कौन-कौन सी बीमारियाँ पैदा हो सकती है | “पित्त प्रधान व्यक्ति” और “पित्त असंतुलन” के बीच का फर्क समझना भी बहुत जरुरी है
पित्त प्रधान प्रकृति वाले लोगों की विशेषताएँ
- कद- मध्यम
- शरीर का गठन- नाजुक
- सीना- मध्यम
- मांसपेशियाँ नसें- मध्यम
- स्नायु- मध्यम प्रधानता
- तिल- कई
- त्वचा का रंग – नीलाभ या भूरापन लिये हुए
- त्वचा- गरम, मुलायम, कम झुर्रीदार,
- बाल- पतले, लाल, रेशमी, जल्दी सफेद होने वाले
- आँखें- मध्यम
शारीरिक रूप से चयापचय (Metabolism)—
पित्त प्रधान वाले व्यक्ति पित्त दोषों तथा पाचन संबंधी विकारों से अधिक प्रभावित होते हैं। ये दोष जन्मजात होते हैं। अत: उन्हें परिवर्तित नहीं, केवल संतुलित किया जा सकता है। बढ़े हुए दोष को कम किया जा सकता है और घटे दोष को बढ़ाया जा सकता है। जब दोष बाधित और असंतुलित होते हैं तो उनमें निम्नलिखित लक्षण और संकेत देखने को मिलते हैं –
पित्त प्रकृति के व्यक्ति इन बीमारियों के शिकार हो सकते हैं
- पेप्टिक अल्सर
- गैस्ट्रिक
- आँत का अल्सर
- त्वचा पर चकत्ते
- विटामिन ए की कमी के कारण आँखों की कमजोरी
- अम्लता (एसिडिटी) के कारण हृदय में जलन
- बालों का गिरना (गंजापन)
- तनाव के कारण हृदयाघात
- आत्मालोचन
पित्त उत्तेजित होने का एक उदाहरण देखें :
एक व्यक्ति को दिन में दस-बारह बार कॉफी पीने की आदत थी। वह मात्रा में कम और अनियमित अंतरालों पर भोजन करते थे। साथ ही अपने कार्य के दौरान तनाव में भी रहते थे। फलस्वरूप उन्हें गैस्ट्रिक अल्सर हो गया और डॉक्टरों ने उन्हें ऑपरेशन करवाने की सलाह दी। ऑपरेशन करवाने से पहले उन्होंने आयुर्वेदिक उपचार को आजमाने की सोची और उन्हें आयुर्वेदिक चिकित्सक ने उन्हें आराम करने को कहा, दूध-निर्मित आहार तथा पित्त को शांत करने वाले खाद्य पदाथों के सेवन की सलाह दी। उन्हें अनियमित भोजन करने की आदत छोड़ने, कॉफी तथा शराब से दूर रहने के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक आराम करने का परामर्श दिया। परिणामस्वरूप उन्हें आराम मिल गया और ऑपरेशन कराने की नौबत ही नहीं आई।
सामान्यत: व्यक्ति से पूछताछ के आधार पर उसकी प्रकृति निर्धारित की जाती है, साथ ही यह शारीरिक जाँच पर भी निर्भर करती है। पूछताछ - भाग (अ) में बताई गई है। नंबर सभी प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करते हैं। शारीरिक जाँच का जिक्र भाग (ब) में है। इसके लिए भी नंबर को उसी तरीके से किया जाता है।
पित्त प्रकृति के व्यक्तियों के लक्षण
भाग अ :
- किसी काम को कैसे करते हैं- मध्यम गति से
- उत्तेजित हो जाते हैं- मध्यम गति से
- नई चीजों को ग्रहण करने की शक्ति- तेज
- याददाश्त- मध्यम
- भूख, पाचन- अच्छा
- भोजन की मात्रा, जो आप ग्रहण करते हैं -अधिक
- कैसा स्वाद पसंद करते हैं- मीठा, कड़वा, सख्त
- प्यास कैसी लगती है – अधिक
- किस प्रकार का भोजन पसंद करते हैं गरम या ठडा- ठंडा
- किस प्रकार का पेय पसंद करते हैं – ठंडा
- मल त्याग नियमित है या अनियमित- दिन में दो बार
- कब्ज की क्या स्थिति है- पतला मल
- क्या पसीना आता है- आसानी से
- यौन इच्छा- मध्यम
- कितने बच्चे- दो या तीन
- क्या अच्छी नींद आती है- कम, लेकिन अच्छी नींद
- क्या रोज सपने देखते हैं- कभी-कभी, हिंसक, डरावने
- बोलने की स्थिति- गुस्से में, चिड़चिड़ाहट के साथ बोलने की आदत
- बातचीत का तरीका- तेज और स्पष्ट
- चलने का तरीका- मध्यम गति से, जमीन पर दबाव डालते हुए
- कार्य के दौरान पैरों, हाथों,भौंहों की हरकतें= साथ-साथ
पित्त प्रकृति के व्यक्तियों की शारीरिक जाँच
भाग ब :
- चेहरा- सफेद, लालिमा लिये हुए, नाजुक
- छाती की दृश्य पसलियाँ- मध्यम, परंतु वसायुक्त
- पेट- मध्यम
- आँखें -भेदक, तीखी पलकें, भूरी, ताँबे के रंग की,
- सफेद आँखों की पुतली का रंग- पीला, लालिमा लिये हुए
- जीभ-ताँबे के रंग की
- दाँत- औसत, लेकिन पीले
- होंठ- ताँबे के रंग के
- शारीरिक संरचना— मध्यम
- शरीर का भार- मध्यम, सामान्य
- शारीरिक बल- मजबूत, औसत
- शरीर- मुलायम
- शरीर पर बाल- ताप्रवर्ण के
- शरीर की गंध- बगलों में अप्रिय गंध
- शरीर की गति- सही तथा तेज
- त्वचा का रंग- गोरा तथा लालिमा लिये हुए
- त्वचा की प्रकृति- मुलायम, तिल तथा चकते
- त्वचा की नमी- थोड़ी तैलीय
- त्वचा का तापमान—कम, कभी-कभी माथा गरम
- जोड़ -ढीले
- पैरों के निशान-अनिश्चित
- नाखून – कम तैलीय, ताम्रवर्णं के
- हाथ- नम, ताँबे के रंग के
- आँखें -गरम स्नान, धूप तथा क्रोध के कारण लालिमा लिये हुए
असंतुलित पित्त के लक्षण
- क्रोध
- तनाव
- शरीर में अम्लता (एसिडिटी) की अधिकता
- अधिक गैस्ट्रिक द्रव-गैस्ट्राइटिस
- भोजन-नली में बेचैनी
- शरीर में जलन
- सिर में जलन और पैरों तथा हथेलियों में जलन
- नाक से रक्त बहना
- पेशाब में जलन
- नाखून पीले होना
अल्सर की उत्पति मुख्यतः पित्त के उत्तेजित होने के कारण होती है। ऐसा अधिकतर मामलों में होता है। अल्सर को पित्त कम करने वाले आहार, पूरा आराम तथा दवाओं से ठीक किया जा सकता है। पित्त शांत करने वाले उपाय हम आगे बतायेंगे।
दोषों के असंतुलन का कारण
आहार, शारीरिक गतिविधियों तथा परिवेश में परिवर्तन के कारण दोष असंतुलित हो जाते हैं। सबसे पहले होने वाला शक्तिशाली दोष वात है। यदि वात बढ़ जाए तो वह पित्त तथा कफ को भी उत्तेजित करके असंतुलित कर देता है।
जब पित्त संतुलित होता है तो व्यक्ति कोमल स्वभाव का, खुशमिजाज, जोशीला और अच्छे स्वास्थ्य का स्वामी होता है। पित्त और कुछ नहीं पाचक रस है। पित्त संतुलित व्यक्ति खूब खाता है और स्वस्थ रहता है। जब पित्त असंतुलित होता है तो चेहरे पर मुँहासे तथा बाल गिरने लगते हैं। चालीस वर्ष की उम्र में या उससे भी पहले गंजापन आने लगता है। अच्छी भूख तथा पाचन के कारण शरीर अनुपात से अधिक बढ़ता है, जिसके कारण गैस्ट्रिक अल्सर, छाती में जलन तथा हृदय संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। ये सब विकार तनाव या दबाव के कारण होते हैं। शोध से पता चला है की वात असंतुलित होकर और पित्त से मिलकर अधिक समस्याएँ उत्पन्न करता है, जैसे-उच्च रक्तचाप, अर्ध पक्षाघात (हेमीप्लेजिया), चेहरे का पक्षाघात तथा साइटिका।
पित्त असंतुलित क्यों होता है ?
- इन चीजो से पित्त प्रधान व्यक्तियों में पित्त असंतुलित हो सकता है।
- तेज धूप में निकलना
- गरम भट्ठी के पास काम करना
- गरम जलवायु में रहना
- तनाव तथा दबाव में रहना
- तीखी मिर्च वाला, गरम तथा मसालेदार भोजन करना
- अधिक नमक का प्रयोग
- खमीरवाले खाद्य पदार्थों का सेवन
- खट्टा भोजन और अधिक महत्वाकांक्षी होना
पित्त असंतुलन से शारीरिक परेशानियाँ
- अल्सर
- अम्लता-अति अम्लता (एसिडिटी)
- शरीर की खट्टी गंध
- बवासीर
- त्वचा पर फोड़े, चकते आदि
- साँस में दुर्गध
- अत्यधिक भूख लगना
- अत्यधिक प्यास लगना
- लू लगना
- हीट स्ट्रोक
- लाल गरम आँखे
व्यवहार संबंधी समस्याएँ
- अवसाद
- चिडचिड़ाहट
- क्रोध
- बेचैनी
- आपा खो देना
- हमेशा दूसरों की आलोचना करना
- बहस में पड़ना
किसी भी दोष में असंतुलन कोई लक्षण उत्पन्न कर सकता है परंतु ये पित्त-असंतुलन के सामान्य संकेत तथा लक्षण हैं। पित्त को आयुर्वेद के अनुसार कैसे संतुलित किया जाता है इसको हम आगे आने वाले लेख में बतायेंगे |