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मत्स्यासन | Matsyasana in Hindi

मत्स्यासन | Matsyasana in Hindi – मत्स्य का अर्थ है मछली। इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है अतः मत्स्यासन कहलाता है। प्लाविनी प्राणायाम के साथ इस आसन की स्थिति में लम्बे समय तक पानी में तैर सकते हैं। इस आसन की एक विशेषता यह है कि इसे लगाकर पानी के ऊपर घंटों लेटा जा सकता है। इसलिए इसे मत्स्यासन भी कहते हैं।

ध्यान :- विशुद्धाख्या चक्र में। श्वास पहले रेचक, बहिर्कुम्भक, फिर पूरक और रेचक।

सजगता :- मत्स्यासन के अभ्यास में शारीरिक रूप से सजगता आमाशय, वक्ष एवं श्वास पर रहे। आध्यात्मिक दृष्टि से धारणा का केन्द्र विशुद्धि चक्र रहता है, जहाँ पर हम अपने ध्यान को केन्द्रित करते हैं।

क्रम :- योग में एक नियम है कि आगे झुकने वाले आसन के बाद एक पीछे झुकने वाले आसन का अभ्यास करना चाहिए। सामान्य रूप से भुजंगासन के बाद उसकी विपरीत अवस्था के लिए मत्स्यासन का अभ्यास किया जाता है। मत्स्यासन के बाद हलासन या सर्वांगासन का अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि वे गर्दन का विपरीत दिशा में विस्तार कर पेशीय तनाव को दूर करते हैं।

श्वास :- मत्स्यासन के समय श्वसन क्रिया धीमी एवं गहरी होती है। श्वास का अनुभव अपने पेट में करना है।

अवधि :- अन्तिम स्थिति में 5 मिनट तक रहा जा सकता है, यद्यपि सामान्य स्वास्थ्य के लिए 1 से 3 मिनट तक का समय पर्याप्त है।

Table of Contents

  1. मस्त्यासन क्या हैं? | What is Matsyasana in Hindi :
  2. मस्त्यासन कैसे करें? | How to do Matsyasana in Hindi :
  3. मस्त्यासन के लाभ | Benefits of Matsyasana in Hindi :
  4. मस्त्यासन से सावधानियाॅं | Precautions form Mastyasana in Hindi :

मस्त्यासन क्या हैं? | What is Matsyasana in Hindi :

मुक्त पद्मासन मतलब सामान्य पद्मासन जिसे हम बद्ध पद्मासन कहते हैं, उसे महर्षि घेरण्ड ने पद्मासन नाम दिया है। अर्थात् पद्मासन लगाकर, हाथों को पीछे ले जाकर पैरों को पकड़ना। यहाँ पर वे कहते हैं, मुक्त पद्मासन का अभ्यास पहले होना चाहिए। मुक्त पद्मासन में हाथों का बन्धन नहीं होता, जो पहले वाले अभ्यास में था।

मुक्तपद्मासनं कृत्वा उत्तानशयनं चरेत् ।

कूर्पराभ्यां शिरो वेष्ट्यं रोगघ्नं मात्स्यमासनम् ॥22॥

अर्थ मुक्त पद्मासन की स्थिति में हाथों की केहुनियों से सिर को लपेट लें और भूमि पर चित्त लेट जायें। यह रोगों को नष्ट करने वाला मत्स्यासन कहलाता है ॥22॥

हठयोग में एक जगह वर्णन भी किया गया है कि कब्जियत को दूर करने के लिए दो-तीन गिलास पानी पीकर इस अभ्यास को जितनी देर हो सके, करना चाहिए। हठयोग में मान्यता है कि ऐसा करने से कब्जियत की बीमारी दूर हो जाती है। यह अभ्यास आँतों का विस्तार करता है, अत: उनके लिए विशेष लाभप्रद है।

मस्त्यासन कैसे करें? | How to do Matsyasana in Hindi :

विधिः भूमि पर बिछे हुए आसन पर पद्मासन लगाकर सीधे बैठ जायें। फिर पैरों को पद्मासन की स्थिति में ही रखकर हाथ के आधार से सावधानी पूर्वक पीछे की ओर चित्त होकर लेट जायें। रेचक करके कमर को ऊपर उठायें। घुटने, नितंब और मस्तक के शिखा स्थान को भूमि के स्थान लगायें रखें। शिखास्थान के नीचे कोई नरम कपड़ा अवश्य रखें। बायें हाथ से दाहिने पैर का अंगूठा और दाहिने हाथ से बायें पैर का अंगूठा पकड़ें।

दोनों कुहनियाँ ज़मीन को लगायें रखें। कुम्भक की स्थिति में रहकर दृष्टि को पीछे की ओर सिर के पास ले जाने की कोशिश करें। दाँत दबे हुए और मुँह बन्द रखें। एक मिनट से प्रारम्भ करके पाँच मिनट तक अभ्यास बढ़ायें। फिर हाथ खोलकर, कमर भूमि को लगाकर सिर ऊपर उठाकर बैठ जायें। पूरक करके रेचक करें।

पहले भूमि पर लेट कर फिर पद्मासन लगाकर भी मत्स्यासन हो सकता है।

मस्त्यासन के लाभ | Benefits of Matsyasana in Hindi :

  • म्त्स्यासन से पूरा शरीर मजबूत बनता है।
  • गला, छाती, पेट की तमाम बीमारियाँ दूर होती हैं।
  • आँखों की रोशनी बढ़ती है। गला साफ रहता है।
  • श्वसनक्रिया ठीक से चलती है।
  • कन्धों की नसें उल्टी मुड़ती हैं इससे छाती व फेफड़ों का विकास होता है। पेट साफ रहता है। आँतों का मैल दूर होता है।
  • रक्ताभिसरण की गति बढ़ती है।
  • फलतः चमड़ी के रोग नहीं होते।
  • दमा और खाँसी दूर होती है। छाती चौड़ी बनती है।
  • पेट की चरबी कम होती है।
  • इस आसन से अपानवायु की गति नीचे की ओर होने से मलावरोध दूर होता है। थोड़ा पानी पीकर यह आसन करने से शौच-शुद्धि में सहायता मिलती है।
  • मत्स्यासन से स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धी सब रोग दूर होते हैं। मासिकस्राव नियमित बनता है।

मस्त्यासन से सावधानियाॅं | Precautions form Mastyasana in Hindi :

सावधानीयाँ : मेरुदण्ड व पीठ दर्द के रोगी, हृदय रोगी, गर्भवती महिलाएँ व हार्निया के रोगी इस आसन को शारीरिक अवस्था का ध्यान रखकर क्रम पूर्वक करें।

विशेष : शीर्षासन और सर्वांगासन के बाद यह आसन करने से विकार समाप्त होते हैं एवं पूर्व में किए गए आसनों के लाभ में वृद्धि होती है।

नोट: इस प्रकार से भी कर सकते हैं कि पहले बैठकर पद्मासन लगाएँ और धीरे-धीरे शवासन की स्थिति में पहुँच जाएँ।

टिप्पणी – यह महत्त्वपूर्ण है कि शरीर को भुजाओं की सहायता से धीरे-धीरे झुकाकर अन्तिम अवस्था में लाया जाए और उसी प्रकार प्रारम्भिक स्थिति में लौटा जाए। यह क्रिया पूर्ण नियन्त्रण एवं सावधानी के साथ करें, क्योंकि झटका लगने से मेरुदण्ड को क्षति पहुँच सकती है।

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