Categories
आसन

सिद्धासन | Siddhasana in Hindi

सिद्धासन | Siddhasana in Hindi – यह शक्ति एवं निपुणता का प्रतीक है, इसलिए इस आसन का नाम सिद्धासन पड़ा। यह ध्यान के अभ्यास हेतु अत्यन्त श्रेष्ठ आसन है। प्रायः विशिष्ट साधनाओं में इसका उपयोग गुदा द्वार तथा जननेन्द्रियों के मध्य (मूलाधार चक्र पर) विशेष दबाव हेतु किया जाता है। पद्मासन के बाद सिद्धासन/विजयासन का स्थान आता है। अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त करने वाला होने के कारण इसका नाम सिद्धासन पड़ा है। सिद्ध योगियों का यह प्रिय आसन है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है।

आकृति :– पद्मासन से मिलती-जुलती, सिद्धि प्राप्ति में सहायक, इसलिए सिद्धासन कहलाता है।

ध्यान :- आज्ञाचक्र में और श्वास, दीर्घ, स्वाभाविक।

दिशा :- पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु)।

समय:- यथासंभव

श्वासक्रम :- प्राणायाम के साथ/अनुकूलतानुसार।

मंत्र:- गुरु द्वारा प्रदत्त या अपने इष्ट देव या ॐ नमः सिद्धेभ्यः का जाप करें।

Table of Contents

  1. Siddhasana in Hindi | सिद्धासन कैसे करें? | How to do Siddhasana in Hindi :
  2. Siddhasana in Hindi | सिद्धासन के लाभ | Benefits of Siddhasana in Hindi :
  3. Siddhasana in Hindi | सिद्धासन की सावधानियाॅं | Precautions in Siddhasana in Hindi :
      1. टिप्पणी :

Siddhasana in Hindi | सिद्धासन कैसे करें? | How to do Siddhasana in Hindi :

विधिः– सिद्धासन करने के लिए सबसे पहले अपने पैरों को सामने फैला लेते हैं। दाहिने पैर को मोड़कर दाहिनी एड़ी को ठीक गुदा द्वार पर रखते हैं, जिससे गुदा द्वार पर दबाव पड़े। जब तक एड़ी का हलका दबाव सिवनी (प्रजननेन्द्रिय और गुदा द्वार के मध्य का भाग) पर न पड़ने लगे तथा जब तक सुविधा का अनुभव न हो तब तक अपने शरीर को हिला-डुला कर व्यवस्थित करें।

पुनः बायें पैर को मोड़कर बायीं एड़ी को दाहिनी एड़ी के ऊपर इस प्रकार रखते हैं कि टखने एक-दूसरे का स्पर्श करते रहें और प्रजननेन्द्रिय पर दबाव पड़े। पुरुष एड़ी को अपने मूत्र संस्थान के ऊपर रखते हैं तो वह दबती है। महिलायें एक एड़ी को दूसरी एड़ी के ऊपर योनि स्थान में रखती हैं।

यदि आपको इस अन्तिम अवस्था में कठिनाई का अनुभव हो तो अपनी बाँयी एड़ी को सरलतापूर्वक श्रोणि के अधिकतम निकट रखने का प्रयास करें। इसके बाद पैरों को इसी स्थिति में बाँध दिया जाता है। दाहिने पैर की अँगुलियों को, जो नीचे है, बायीं जाँघ और पिण्डलियों के बीच से ऊपर खींच लेते हैं।

बायें पैर की अँगुलियों को दाहिनी जाँघ और पिण्डली के बीच में घुसा देते हैं। इस स्थिति में आसन में ताला-सा लग जाता है। यह कुछ कठिन आसन है, विशेषकर पुरुषों के लिए, क्योंकि इसमें प्रजननेन्द्रिय पर जो दबाव या भार पड़ता है, उसके कारण इस आसन को करने में कठिनाई हो सकती है।

siddhasana2

यह पैरों की स्थिति है। इसके साथ ही रीढ़ की हड्डी को सीधा रखना है। सीधा कहने का तात्पर्य तान कर रखना नहीं, वरन तनाव रहित अवस्था में सीधा रखना है। इस आसन को सही प्रकार से करने के लिए यह आवश्यक है कि रौढ़ को हड्डी सीधी रहे, ताकि पेट का क्षेत्र दबा हुआ न रहे। यदि पेट दबा हुआ रहे तो इस आसन में कुछ समय के बाद कमर और पेट के निचले भाग में दर्द होने लगता ।

अगर पेट का क्षेत्र फैला हुआ रहे, विस्तृत रहे तो दर्द नहीं होता और प्राण वायु का, जो हमारे उदर में है, प्रवाह सही रूप से होता है। यहाँ पर पेट और छाती दोनों सामान्य मुद्रा में तनावरहित स्थिति में रहेंगे और दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञानमुद्रा या चिन्मुद्रा की स्थिति में रहेंगे। अब शरीर को सुविधाजनक स्थिति में व्यवस्थित कर लेते हैं। ख्याल रखें कि घुटने जमीन के सम्पर्क में बने रहें। अब कल्पना करें कि आपका शरीर वृक्ष की भाँति जमीन में स्थित है।

नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठाने के लिए छोटी गद्दी का प्रयोग किया जा सकता है। इससे टखने के निचले हिस्से पर दबाव कम पड़ेगा। दाहिने पैर को पहले मोड़ें या बायें पैर को, इसका निर्धारण साधक को अपनी व्यक्तिगत सुविधा के अनुरूप करना चाहिए। अनेक लोगों को दोनों टखनों के स्पर्श-स्थल पर पीड़ा अथवा कष्ट की अनुभूति होती है। यदि आवश्यक हो तो दर्द निवारण के लिए दोनों टखनों के मध्य स्थान पर कपड़े या स्पंज का टुकड़ा रखा जा सकता है।

प्रारम्भ में आप सिवनी पर पड़ने वाले दबाव को भी 1-2 मिनट से ज्यादा सहन नहीं कर पायेंगे। लेकिन धीरे-धीरे नियमित अभ्यास से इस समय में वृद्धि होती जायेगी। इस आसन में बैठने के लिए पैरों का पर्याप्त लचीला होना आवश्यक है, इसलिए प्रारम्भ में अपने पैरों की लोच-सीमा के अतिक्रमण का प्रयास न करें।

Siddhasana in Hindi | सिद्धासन के लाभ | Benefits of Siddhasana in Hindi :

  • सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है। प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है।
  • मन को एकाग्र करना सरल बनता है।
  • पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।
  • ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है। विचार पवित्र बनते हैं। मन एकाग्र होता है। सिद्धासन का अभ्यासी भोग-विलास से बच सकता है। 72 हजार नाड़ियों का मल इस आसन के अभ्यास से दूर होता है। वीर्य की रक्षा होती है। स्वप्नदोष के रोगी को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
  • योगीजन सिद्धासन के अभ्यास से वीर्य की रक्षा करके प्राणायाम के द्वारा उसको मस्तिष्क की ओर ले जाते हैं जिससे वीर्य ओज तथा मेधाशक्ति में परिणत होकर दिव्यता का अनुभव करता है। मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
  • कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है।
  • सिद्धासन में बैठकर जो कुछ पढ़ा जाता है वह अच्छी तरह याद रह जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभदायक है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।
  • आत्मा का ध्यान करने वाला योगी यदि मिताहारी बनकर बारह वर्ष तक सिद्धासन का अभ्यास करे तो सिद्धि को प्राप्त होता है। सिद्धासन सिद्ध होने के बाद अन्य आसनों का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता।
  • सिद्धासन से केवल या केवली कुम्भक सिद्ध होता है। छः मास में भी केवली कुम्भक सिद्ध हो सकता है और ऐसे सिद्ध योगी के दर्शन-पूजन से पातक नष्ट होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है। सिद्धासन के प्रताप से निर्बीज समाधि सिद्ध हो जाती है। मूलबन्ध, उड्डीयान बन्ध और जालन्धर बन्ध अपने आप होने लगते हैं।
  • सिद्धासन जैसा दूसरा आसन नहीं है, केवली कुम्भक के समान प्राणायाम नहीं है, खेचरी मुद्रा के समान अन्य मुद्रा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है।
  • सिद्धासन महापुरूषों का आसन है। सामान्य व्यक्ति हठपूर्वक इसका उपयोग न करें, अन्यथा लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना है।

Siddhasana in Hindi | सिद्धासन की सावधानियाॅं | Precautions in Siddhasana in Hindi :

इस आसन का अभ्यास सभी कर सकते हैं। केवल ऐसे व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए जिन्हें साइटिका हो या रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में गड़बड़ी हो या अण्डकोष बढ़ा हुआ हो, क्योंकि बहुत बार जब बिना अभ्यास के इस आसन को लोग करते हैं, तब यदि अण्डकोष बढ़ा हुआ हो तो फट जाता है, जिसके कारण पानी थैली में आ जाता है और दर्द होने लगता है।

टिप्पणी :

सिद्धासन और पद्मासन के लाभ लगभग एक जैसे ही हैं। चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाने के लिए यह आसन उपयुक्त अतः सभी साधकों, ब्रह्मचारियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए। प्राणायाम और ध्यान के लिए यह आसन जरूर करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published.