बस्ती क्रिया

बस्ती क्रिया से आंतो से मल पूर्ण रूप से साफ हो जाता है। बस्ती क्रिया उदर सम्बन्धी बीमारियो को दूर करने में सहायक होती है। बस्ती क्रिया को शुरू में करन

    बस्ती क्रिया

     बस्ती क्रिया क्या है

    बस्ती क्रिया




    हठ योग के दौरान एनिमा करने की क्रिया को बस्ती क्रिया कहा जाता है। यह क्रिया उदर और मलाशय के शोधन की क्रिया होती है।

    बस्ती क्रिया से आंतो से मल पूर्ण रूप से साफ हो जाता है। बस्ती क्रिया उदर सम्बन्धी बीमारियो को दूर करने में सहायक होती है। बस्ती क्रिया को शुरू में करना थोड़ा कठिन होता है, इसलिए इसे शुरू करने के लिए एक कुशल प्रशिक्षक कि उपस्थिति में ही इसे करना अच्छा होता है।

    इसके नियमित अभ्यास से इसे करने से बहुत अधिक लाभ कि प्राप्ति होती है। बस्ती क्रिया को दो प्रकार से किया जाता है जल बस्ती और स्थल बस्ती।

    बस्ती क्रिया का उद्देश्य शरीर से विष को हटाना और शरीर को ठंडा करना होता है। इस क्रिया को करने से नींद अच्छी आती है साथ ही आलस्य भी दूर हो जाता है। इस क्रिया द्वारा बवासीर जैसी बीमारी ठीक हो जाती है । 

    वस्ति का अर्थ है होता है ‘उदर का निचला भाग’। वस्ति योग क्रिया में उदर के निचले भाग विशेषकर पाचन तंत्र को स्वच्छ करने के लिए प्रैक्टिस किया जाता है। यह आंतों को साफ करने का एक प्राचीन क्रिया है। वस्तिकर्म में गुदा मार्ग के द्वारा पानी या वायु को बड़ी आंत में खींचा जाता है और फिर इसको निकाल दिया जाता है। इससे बड़ी आंत के निचले हिस्से को साफ करने में मदद मिलती है।

    बस्ती क्रिया कैसे करें

    प्राचीनकाल में बस्ती क्रिया नदी किनारे ऊकड़ू बैठ कर पूरी की जाती थी। नौलि की सहायता से पानी को आंतों में खींच लिया जाता था और फिर उसको वापस नदी में निकाल दिया जाता था। आज यही विधि आंतों के निचले भाग को साफ करने के लिए एनीमा के रूप में प्रयोग में ली जाती है।

    शंका प्रक्षालन
    इस विधि का अभ्यास प्रात:काल खाली पेट होने पर किया जाता है और पहले तीन बार निश्चित रूप से यह अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" शिक्षक के मार्ग-दर्शन में ही किया जाता है।

    विधि :

    6 से 7 लीटर पानी को 34-40 सेन्टिग्रेड तक गुनगुना कर लें। आधा चाय-चम्मच सागर नमक प्रति लीटर पानी के हिसाब से डालें (उच्च रक्तचाप हो तो खाने का नमक उपयोग में लायें।) पूरे अभ्यास के दौरान पानी का तापमान एक-सा ही रहना चाहिए।

    तेजी से एक-एक गिलास करके पूरा पानी पी जायें। हर गिलास के बाद, खींचने और मुडऩे के व्यायाम, जैसे त्रिकोण आसन, त्रिर्यक भुजंगासन, शरीर को दायें-बायें मोडऩा, मेरु पृष्ठासन और ताड़ासन इन पांच आसनों का अभ्यास करना चाहिए।

    पांचवें गिलास के बाद शौचालय जायें और अश्विनी मुद्रा (जल्दी-जल्दी गुदा की मांसपेशियों को सिकोडऩा और खोलना) करें। यह मुद्रा आंतों की लहरी गति को प्रोत्साहित करती है।

    गरम नमकीन पानी गिलास के बाद गिलास पीना जारी रखें और पांचों आसन व अश्विनी मुद्रा करते रहें, तब तक कि ठोस मल पूरी तरह न निकल जाये। यह प्रक्रिया तब पूरी होती है जब पेट से शौच के रूप में पूरी तरह साफ पानी बाहर आने लगता है। पानी का रंग कुछ पीला सा हो सकता है, किन्तु इसमें कोई ठोस अंश नहीं होना चाहिए।

    इसके बाद पेट, भोजन नली और गले की नलियों को धौति की सहायता से (किन्तु बिना नमकीन पानी के) साफ करें। अन्त में जल नेति सिर दर्द से बचने के लिए करें। शंका-प्रक्षालन अभ्यास के बाद एक घंटा विश्राम करें। अपने शरीर को अच्छी तरह ढक लें, किन्तु निद्रा नहीं आने दें।

    सावधानी :
    निम्नलिखित भोजन महत्वपूर्ण है। खिचड़ी शंका-प्रक्षालन के लगभग 1 घंटा बाद खानी चाहिए-यह विश्राम से पूर्व बनाई जा सकती है।

    खिचड़ी बनाना :
    दो प्याले बासमती चावल, 3/4 प्याले छिलके वाली मूंग की दाल, आधा चाय-चम्मच पिसी हल्दी, आधा चम्मच सफेद जीरा और नमक एक बर्तन में डालें, इनको तिगुने पानी से ढक दें। इसको तब तक उबलने दें, जब तक यह पक कर तैयार न हो जाये। अब एक बड़ी कल्छी मक्खन मिलाकर या घी डालकर परोसें। यह भोजन आंतों के मार्ग पर एक रक्षात्मक झिल्ली बनाने में समर्थ है, इसलिए जितना संभव हो उतना अवश्य खाना चाहिए। यह भोजन करने के बाद दो घंटे तक पानी नहीं पियें।

    भोजन

    आने वाले सप्ताहों में केवल शीघ्र पचने वाला भोजन करें, क्योंकि इस अभ्यास के बाद आंतें बहुत मुलायम हो जाती हैं। सात दिन तक दूध, पनीर, कच्चे फल, साग सब्जियां, काली चाय और काफी का परहेज करें। 20 दिन तक गैस बनाने वाले भोजन जैसे फलियां, गोभी, बंद गोभी, अदरक, प्याज, गरम दालें और कार्बन युक्त पेय न लें। कम से कम 40 दिन तक मांस मछली अंडे, शराब न लें। तथापि हमारे स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम यह है कि इनको पूरी तरह छोड़ दिया जाये।

    आंतों की लहरी गति को प्रोत्साहित करने के लिए यह परामर्श दिया जाता है कि अग्निसार क्रिया की नौलि का अभ्यास शंका प्रक्षालन विधि के बाद प्रतिदिन किया जाये।

    यह सामान्य बात है कि इस अभ्यास के बाद अगले 2-3 दिन तक किसी प्रकार की शौच निवृत्ति की आवश्यकता न हो। 5वें दिन के भोर सवेरे ही आप गरम, बिना नमक मिला पानी (4 से 5 गिलास) पीयें और हर गिलास के बाद वो ही अभ्यास करें जो शंका प्रक्षालन के बाद किये जाते हैं।

    शंका प्रक्षालन का अभ्यास वर्ष में चार बार हर ऋतु के परिवर्तन के समय किया जाना चाहिए। यह समय हमारे भीतर शारीरिक परिवर्तन का होता है। विकल्प के रूप में इस विधि का अभ्यास वर्ष में कम से कम दो बार, मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रारम्भ, मध्य मार्च से अप्रैल के प्रारंभ तक, किया जा सकता है।

    बस्ती क्रिया के फायदे

    • पेट साफ होता है  
    • पेट के सभी प्रकार के रोग ठीक होते हैं। 
    • बड़ी आंत साफ होती है और उसकी शक्ति बढ़ती है। 
    • तीनों (वात, पित्त, कफ) दोष ठीक होते हैं। भूख बढ़ती है। 
    • शरीर हल्का हो जाता है। मन प्रसन्न रहता है। 
    • स्वस्थ व्यक्ति को महीने में एक-दो बार एनिमा अवश्य लेना चाहिए।