नौली क्रिया

नौली क्रिया षटकर्मों के शुद्धिकरण की चौथी क्रिया है। जठराग्नि को बढ़ाने वाली इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों की मालिश हो जाती हैं तथा उदर कि क्रियाशी

     नौली क्रिया क्या है

    नौली क्रिया




    नौली क्रिया में पेट के मध्य भाग की मांसपेशियों को मथानी की भांति संचालित किया जाता है। यह क्रिया कुछ कठिन अवश्य है किंतु निरंतर अभ्यास से आप इसे अच्छी तरह से कर सकते हैं नौली क्रिया करते समय आपकी आंखें पेट की ओर होनी चाहिए। नौली क्रिया पेट से संबंधित बीमारियों और आंतों की समस्याओं में फायदा दिलाती हैं। नौली क्रिया को करने से अनेक लाभ मिलते हैं। इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है अपच की समस्या दूर होती हैं और भूख को बढ़ाती हैं।

    नौली क्रिया षटकर्मों के शुद्धिकरण की चौथी क्रिया है। जठराग्नि को बढ़ाने वाली इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों की मालिश हो जाती हैं तथा उदर कि क्रियाशीलता में वृद्धि होती हैं।

    नौली क्रिया के अत्यधिक अभ्यास से कुंडलिनी जागरण होता है इस कारण नौली क्रिया को शक्तिचालिनी भी कहते हैं। नौली क्रिया का पूर्ण अभ्यास करने पर शरीर में एक शक्तिशाली योग बल का प्रसार होता है जिसके द्वारा बस्ती क्रिया और शंखप्रक्षालन सिद्ध हो जाती है। और शरीर विकार रहित शुद्ध और कांतिमान होकर चमकने लगता है।

    शुरुआत में नौली क्रिया करना थोड़ा कठिन लग सकता है इसलिए आप नौली क्रिया की जगह अग्निसार क्रिया का भी अभ्यास कर सकते हैं लेकिन यदि साधक को आध्यात्मिक अनुभव चाहिए तो उसे नौली क्रिया को अवश्य सीखना चाहिए। तो आइए जानते हैं नौली क्रिया करने की विधि।

    नौली क्रिया कैसे करें

    • इस क्रिया को करने के लिए पद्मासन की स्थिति में बैठकर, दोनों हाथों से दोनों घुटनों को दबाकर रखते हुए शरीर को सीधा रखते है। 
    • इसके बाद साँस को   बाहर निकालकर पेट की माँसपेशियों को ढीला रखते हुए अंदर की ओर खींचे। 
    • अब स्नायुओं को ढीला रखते हुए पेट में दायीं-बायीं ओर घुमाएँ। इससे पेट में किसी प्रकार की गंदगी नहीं रह पाती और अपानवायु वश में आ जाती है।

    नौली क्रिया के प्रकार

    • उड्डीयान बंध - मुँह से हवा को बल पूर्वक बाहर निकालकर नाभी को अंदर खींचना उड्डीयान बंध कहलाता है।
    • वामननौली - जब उड्डीयान बंध पूरी तरह लग जाए तो माँसपेशियों को पेट के बीच में छोड़े। पेट की ये माँसपेशियाँ एक लम्बी नली की तरह दिखाई पड़ेगी। इन्हें बायीं तरफ ले जाएँ।
    • दक्षिण नौली - इसके पश्चात इसे दाहिनी ओर ले जाएँ।
    • मध्यमा नौली - इसे मध्य में रखें और तेजी से दाहिने से बाएँ और बाएँ से दाहिनी ओर ले जाकर माँसपेशियों का मंथन करें। इसे तब तक करें जब तक आप इसे आसानी से कर सके|

    नौली क्रिया से लाभ

    • नौलि पेट की मांसपेशियों को मजबूत करती है 
    • आंतों व पेट के निचले अवयवों की मालिश करती है। 
    • यह रक्तचाप को नियमित करती है 
    • मधुमेह के खिलाफ सुरक्षात्मक परहेजी प्रभाव रखती है। 
    • यह अम्ल शूल और चर्म रोगों (मुहांसों) को दूर करने में सहायक है।
    • संपूर्ण पाचक प्रणाली पर सकारात्मक असर और रुकावटें दूर करने से नौलि हमारे स्वास्थ के लिए सर्वोत्तम व्यायामों से एक है। 
    • बहुत सारे रोगों का मूल हमारी पाचन प्रणाली में ही है : सिर दर्द, चर्म रोग, कई बार कैंसर भी।